
जब दो पुराने मित्र 31 महीने बाद मिलते हैं, तो या तो चाय गर्म होती है या सियासत। इस बार मामला सीएम योगी आदित्यनाथ और बृजभूषण शरण सिंह के बीच की ‘भावनात्मक’ मुलाकात का है — जिसे नेता तो भाव कह रहे हैं, पर विश्लेषक इसे भविष्य की चाल मान रहे हैं।
बृजभूषण सिंह ने कहा:
“56 साल के संबंध हैं, ये कोई राजनीतिक नहीं, दिल से दिल की बात थी।”
लेकिन राजनीति में दिल की बातें अक्सर दिमाग से तय होती हैं — खासकर जब 2027 विधानसभा चुनाव सामने खड़ा हो।
31 महीने की दूरी और 31 मिनट की बातचीत
जनवरी 2023 में जब महिला पहलवानों के आरोप लगे, तब बृजभूषण खुद को अलग-थलग महसूस कर रहे थे। अब जब बेटा सांसद बन गया और “मौसम भी अनुकूल हो चला”, तो अचानक मुख्यमंत्री का बुलावा भी आ गया।
अब चाहे यह ‘सीएम कॉलिंग’ हो या ‘पार्टी पॉलिटिक्स’, लेकिन पूर्वांचल के पावरहाउस की वापसी की झलक तो मिल ही गई।
राजनीति में इमोशन की स्पेलिंग — ELECTION होती है!
राजनीतिक विश्लेषक इस मुलाकात को सिर्फ “शिष्टाचार भेंट” नहीं मानते। पार्टी के अंदरूनी समीकरण और आगामी 2027 विधानसभा चुनावों को देखते हुए ये एक “कूटनीतिक बातचीत का आगाज” हो सकता है।
और वैसे भी —
“जो बात नहीं की जाती, वही सबसे ज्यादा की जाती है!”
क्या केंद्रीय नेतृत्व ने करवाया ‘समझौता समागम’?
सूत्रों की मानें तो बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि यूपी में पार्टी के हर प्रभावशाली चेहरे को साधा जाए — खासकर वो जो ‘कभी अपने थे, अब अपने बेटों के जरिए अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं’।
बृजभूषण के बेटे:
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प्रतीक भूषण सिंह – गोंडा विधायक
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करण भूषण सिंह – कैसरगंज सांसद
यानि परिवार पूरी तरह सियासी है, और पार्टी उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज नहीं कर सकती।
योगी को ‘गिले-शिकवे’ सुनाने या सीट के संकेत देने?
बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि उन्होंने गिले-शिकवे साझा किए। अब ये गिले व्यक्तिगत थे या राजनीतिक, यह सवाल ज्यादा अहम है।
क्या वो 2027 में राज्य की राजनीति में वापसी की तैयारी कर रहे हैं?
या फिर किसी संसदीय या संगठनात्मक पद की उम्मीद जता रहे हैं?
क्योंकि “सियासत में हर साइलेंस के पीछे स्ट्रेटेजी होती है!”
बैकग्राउंड ब्रीफ: बृजभूषण सिंह कौन हैं?
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छह बार के सांसद
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अयोध्या आंदोलन के समय से बीजेपी के स्टार
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महिला पहलवानों के आरोपों के चलते विवादों में
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बेटे को टिकट देकर पार्टी ने ‘बेटा बचाओ’ नीति अपनाई
क्या आगे भी ‘मुलाकातें’ चलती रहेंगी?
बृजभूषण-योगी की यह मुलाकात अगर वास्तव में ‘भावनात्मक’ थी, तो सियासत में भावनाओं की जगह इतनी जल्दी क्यों बन गई?
राजनीति में “एक मुलाकात कभी सिर्फ मुलाकात नहीं होती”, वह भविष्य की संभावनाओं की जमीन तैयार करती है।